अपनों को समर्पित poem in hindi

क्या था ऐसा कि हम अपनों से दूर थे!
क्या था ऐसा कि हम मजबूर थे!!
बच्चें अपने "माँ-बाप" के प्यार को तरस गए थे!
बूढ़े "माँ-बाप"अपने बच्चों के मिलन को तरस गए थे!!
क्या था ऐसा कि बचपन काग़ज़ की कश्ती के बिना बीत रहा था!
क्या था ऐसा कि हम अपनों से दूर जाने के बहाने ढूंढ रहे थे!!
क्या था ऐसा कि हमें अपनी मां का हाल जानने की भी फुर्सत नहीं थी!
कुदरत ने हमें अब चेताया है!!
"कोरोना वायरस" के रूप में कुदरत का संदेश आया है!
करो बात अपने "मां-बाप" से ये कुदरत ने फरमाया है!!
जिन "भाई-बहनों" को तुमने ठुकराया है!
मिलकर बात करो उनसे ये वक्त आया है!!
"कोरोना वायरस" ने हमें ये समझाया है!!!

Comments

  1. दोस्तों कृपया कमेंट करके जरूर बताएं कि आपको कैसी लगी है मेरी कविता ताकि मुझे और लिखने का हौसला मिले धन्यवाद!!!

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