कितनी शिद्दत से, चाहा था मैंने तुझे*
ये मेरी किस्मत है कि, मैं तुझे पा ना सका**
सोचा था कि, एक नई दुनिया बनाऊंगा तेरे साथ*
पर तू है कि, मुझे अपना ना सकी**
अब जाके मुझे पता चला, ये दुनिया का रूप*
जिस पेड़ पर फल हों, वहीं बैठ जाते हैं लोग**
इसमें तेरा नहीं, ये है जमाने का कुसूर*
तूने वहीं छोड़ा, जहाँ छोड़ जाते हैं लोग**
टूट जाएगा एक दिन, तेरा ये घमण्ड*
तब तुझे एहसास, होगा मेरा**
अब भी मेरी ये ख़्वाहिश है कि, तुझे इस जहाँ की सारी खुशियाँ मिलें***
ये मेरी किस्मत है कि, मैं तुझे पा ना सका**
सोचा था कि, एक नई दुनिया बनाऊंगा तेरे साथ*
पर तू है कि, मुझे अपना ना सकी**
अब जाके मुझे पता चला, ये दुनिया का रूप*
जिस पेड़ पर फल हों, वहीं बैठ जाते हैं लोग**
इसमें तेरा नहीं, ये है जमाने का कुसूर*
तूने वहीं छोड़ा, जहाँ छोड़ जाते हैं लोग**
टूट जाएगा एक दिन, तेरा ये घमण्ड*
तब तुझे एहसास, होगा मेरा**
अब भी मेरी ये ख़्वाहिश है कि, तुझे इस जहाँ की सारी खुशियाँ मिलें***
Tell me freinds plz what do you think about this Poetry...
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