वक़्त ग़ज़ल

वो ऐसा क्या था उस शख़्स में, जो मुझमें ना था*
वो तेरा हो गया, और मुझको ज़रा ख़बर ना हुई**
वक़्त दर वक़्त, वो करवटे बदलता रहा*
और हमें लगा, कि सिक्का अपना ही चलता रहा**
हुई सुबह, जब नींद से जागे हम*
सूरज की तपिश से पता चला, कि मौसम में अब वो नमी ना रही**
ख़्वाबों में मिल रहे थे, हम तुमसे बारहा*
आँखें खुली तो पता चला, कि तू बस ख़्वाब में ही अपना था**
होगा तुझे एहसास, तेरी इस बेख़ुदी का एक दिन*
तब तक तो हम भी पा चुके होंगे, नया हमसफर***

Comments

  1. Tell me guys what content do you really like please...

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