शदीद गर्मियों के मौसम में!
सुलाया था तूने मुझे, जब अपनी घनी ज़ुल्फ़ों की छाओं में!!
किस क़दर, ख़ुशग़वार हुआ था मौसम!
उन हवाओं की, सोंधी सी ख़ुशबू से!!
मगर अब उस बाग़ की डाली पे, वो बहार ना रही!
तू किसी और की हो रही थी, और मुझे ख़बर ना रही!!
मेरी हर ख़ुशी ले गई, तेरी ये नाराज़गी जो रही!
सब्र करूँ मैं! कैसे, तेरे जाने पर!!
तू मेरे दिल में बसी है, हर एक ठिकाने पर!
मैं ख़ुशनसीब हूँ बहुत शायद, जो इतना अरसा तेरे साथ रहा!!
बिखर के रह गया है वो, जिसको तेरा इन्तेज़ार रहा!
अब है बस यही एक आस, मेरे दिल को!!
लौटेगी फिर वही बहार, शायद मुझे मनाने को!!!
सुलाया था तूने मुझे, जब अपनी घनी ज़ुल्फ़ों की छाओं में!!
किस क़दर, ख़ुशग़वार हुआ था मौसम!
उन हवाओं की, सोंधी सी ख़ुशबू से!!
मगर अब उस बाग़ की डाली पे, वो बहार ना रही!
तू किसी और की हो रही थी, और मुझे ख़बर ना रही!!
मेरी हर ख़ुशी ले गई, तेरी ये नाराज़गी जो रही!
सब्र करूँ मैं! कैसे, तेरे जाने पर!!
तू मेरे दिल में बसी है, हर एक ठिकाने पर!
मैं ख़ुशनसीब हूँ बहुत शायद, जो इतना अरसा तेरे साथ रहा!!
बिखर के रह गया है वो, जिसको तेरा इन्तेज़ार रहा!
अब है बस यही एक आस, मेरे दिल को!!
लौटेगी फिर वही बहार, शायद मुझे मनाने को!!!
Hello friends what are you feeling about this Poetry tell me..
ReplyDelete