मैंने! बहुत क़रीब के लोगों में फ़रेब देखा है**
तुझपे शक़ तो नही था मगर, अब यक़ीन हुआ है*
तेरी बेवफाई का चर्चा, जब सरेआम हुआ है**
मुहब्बत का मतलब क्या है तेरे नज़दीक, मुझे अब तक समझ नही आया*
क्या जिस्म का हासिल ही, तेरे नज़दीक मुहब्बत है**
क्यूँ रखा अपने फ़रेबों से लाइल्म, मेरी मासूम मुहब्बत को*
जब ना था पसंद तरीक़ा, मेरी मुहब्बत का तुझे**
जिस्म का क्या है, जिस्म तो फ़ानी है मगर*
रूह का रिश्ता, तो अनमोल होता है**
कितने दिलों को मैंने, तेरी मुहब्बत में रुसवा किया है*
तूने फिर भी मेरे दिल को, बड़ी शिद्दत से तोड़ा है**
जा अब तुझे इजाज़त है, जहाँ चाहे वहाँ जा*
दिल मेरा कभी तुझसे, अब फ़ैज़याब ना होगा***
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