3THVTX3KFLFG3R SB POETRY: Lamhe Poetry

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Monday, July 13, 2020

Lamhe Poetry

दुआओं का मुन्तज़िर हूँ, मुझे अपनी दुआओं से नवाज़ दें•
ज़िन्दगी के इस सफ़र में हमारा, थोड़ा आप भी साथ दें••
गुज़र गए हैं जो लम्हे, उनका अफ़सोस क्या करना*
इससे क्या फ़ायदा कि फ़लाँ ख़राब थे, और फ़लाँ लाजवाब थे**
बड़े हसीन ख़्वाब थे, मेरी आँखों में कभी मगर•
कुछ को हमने तोड़ दिया, और कुछ हमारी पहुँच से बाहर थे••
बड़ा मख़सूस रहा है सफ़र, अभी तक अपना*
अब इल्तिजा है तुझसे ऐ ख़ुदा, तू मुझे कुछ और ज़्यादा नवाज़ दे***

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