बहुत सम्भाल के रखे हैं, हमने वो हसीं लम्हे*
तुम्हारे साथ जो गुज़रे, वो दिन कमाल के थे**
वक़्त, मुड़ता नहीं पीछे वरना*
हम उन लम्हों को, ओर यादगार बनाते**
तुम्हारा मेरी आँखों को पढ़ लेना, बहुत सुकून देता था*
ख़फ़ा हूँ ख़ुद से मैं मगर, कि उस वक़्त में हम ज़्यादा समझदार ना हुए**
वो वक़्त, बड़ी ख़ामोशी से बीतता चला गया*
ओर हम तुमसे इस क़दर दूर, फिर होते चले गए**
पर दिल से यही दुआ, तुम्हारे लिए निकलती है*
जहाँ भी तुम रहो, खुशियाँ तुम्हारे दामन में हों वहाँ**
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