3THVTX3KFLFG3R SB POETRY: Guzre Lamhe Poetry

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Tuesday, September 01, 2020

Guzre Lamhe Poetry

बहुत सम्भाल के रखे हैं, हमने वो हसीं लम्हे*

तुम्हारे साथ जो गुज़रे, वो दिन कमाल के थे**

वक़्त,  मुड़ता नहीं पीछे वरना*

हम उन लम्हों को, ओर यादगार बनाते**

तुम्हारा मेरी आँखों को पढ़ लेना, बहुत सुकून देता था*

ख़फ़ा हूँ ख़ुद से मैं मगर, कि उस वक़्त में हम ज़्यादा समझदार ना हुए**

वो वक़्त, बड़ी ख़ामोशी से बीतता चला गया*

ओर हम तुमसे इस क़दर दूर, फिर होते चले गए**

पर दिल से यही दुआ, तुम्हारे लिए निकलती है*

जहाँ भी तुम रहो, खुशियाँ तुम्हारे दामन में हों वहाँ**

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