वक़्त दर वक़्त, तेरा क़िरदार बदलता चला गया*
हमें ख़बर भी ना हुई, तू इतना दूर चला गया**
दिल ये चाहता है कि अब तुझसे, मुलाक़ातें बहुत मख़सूस सी हों•
तुझे भूलना अब मेरे दिल को, मंज़ूर होता चला गया••
सज़ा मिली है हमें, बेख़ता की तुमसे*
अब हमें, तेरे ज़िक्र को सुनना बहुत दुश्वार हो गया**
दोस्ती का हाथ बढ़ा रही हो, कहीं कोई नई चाल तो नही•
अगर नही, तो फिर इस एहसान की वजह क्या है••
कैसे कर लूँ मैं यक़ीं तुम पर, ये मुमक़िन तो नही है*
फिर ज़ख़्म, कोई नया देने का इरादा तो नही है**
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