क्यूँ लग रहा है मुझे, कि कोई साथ नही है मेरे*
जिसे भी अपना समझा, वही पराया हो गया मुझसे**
क्यूँ मेरी मुहब्बत को नही, समझ पाता है कोई*
क्यूँ मेरी एक भी ग़लती को, ना बर्दाश्त करता है कोई**
मुझे अब ख़ुदी के लिए, जीना है बस यहाँ*
उम्मीद सिर्फ़ अब मुझे, अपने ख़ुदा से करनी है**
वही क़ादिर है, मुझे इन अँधेरों से निकालने पर*
वही रोशनी को, मेरी ज़िन्दगी में लायेगा**
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